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अ॒भी᳕मं म॑हि॒मा दिवं॒ विप्रो॑ बभूव स॒प्रथाः॑। उ॒त श्रव॑सा पृथि॒वी सꣳ सी॑दस्व म॒हाँ२ऽ अ॑सि॒ रोच॑स्व देव॒वीत॑मः। वि धू॒मम॑ग्नेऽअरु॒षं मि॑येद्ध्य सृ॒ज प्र॑शस्त दर्श॒तम् ॥१७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒भि। इ॒मम्। म॒हि॒मा। दिव॑म्। विप्रः॑। ब॒भू॒व॒। स॒प्रथा॒ इति॑ स॒ऽप्रथाः॑। उ॒त। श्रव॑सा। पृ॒थि॒वीम्। सम्। सी॒द॒स्व॒। म॒हान्। अ॒सि॒। रोच॑स्व। दे॒व॒वीत॑म॒ इति॑ देव॒ऽवीत॑मः। वि। धू॒मम्। अ॒ग्ने॒। अ॒रु॒षम्। मि॒ये॒ध्य॒। सृ॒ज। प्र॒श॒स्त॒। द॒र्श॒तम् ॥१७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:38» मन्त्र:17


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (प्रशस्त) प्रशंसा को प्राप्त (मियेध्य) दुष्टों को दूर करनेहारे (अग्ने) अग्नि के तुल्य प्रकाशमान तेजस्वी विद्वन् ! (महिमा) महागुणविशिष्ट (सप्रथाः) प्रसिद्ध उत्तम कीर्तिवाले (विप्रः) बुद्धिमान् आप (इमम्) इस (दिवम्) अविद्यादि गुणों के प्रकाश को (अभि, बभूव) तिरस्कृत करते हैं (उत) और (श्रवसा) सुनने वा अन्न के साथ (पृथिवीम्) भूमि पर (सम्, सीदस्व) सम्यक् बैठिये, जिस कारण (देववीतमः) दिव्य गुणों वा विद्वानों के अतिशय कर प्राप्त होनेवाले (महान्) महात्मा (असि) हैं, जिससे (रोचस्व) सब ओर से प्रसन्न हूजिये और (अरुषम्) थोड़े लाल रङ्ग से युक्त इसी से (दर्शतम्) देखने योग्य (धूमम्) धुएँ को होम द्वारा (वि, सृज) विशेष कर उत्पन्न कीजिये ॥१७ ॥
भावार्थभाषाः - यही मनुष्यों की महिमा है जो ब्रह्मचर्य के साथ विद्या को प्राप्त हो सर्वत्र फैलाकर शुभ गुणों का प्रचार करके सृष्टिविद्या की उन्नति करते हैं ॥१७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(अभि) आभिमुख्ये (इमम्) (महिमा) (दिवम्) अविद्यागुणप्रकाशम् (विप्रः) मेधावी (बभूव) भवति (सप्रथाः) सुकीर्त्तिप्रख्यातियुक्तः (उत) अपि (श्रवसा) श्रवणेनाऽन्नेन वा (पृथिवीम्) भूमिम् (सम्) (सीदस्व) सम्यगास्व (महान्) (असि) (रोचस्व) अभितः प्रीतो भव (देववीतमः) यो देवान् दिव्यान् गुणान् विदुषो वेति व्याप्नोति प्राप्नोति सोऽतिशयितः (वि) (धूमम्) (अग्ने) अग्निरिव प्रकाशमान विद्वन् ! (अरुषम्) आरक्तरूपविशिष्टम् (मियेध्य) दुष्टानां प्रक्षेपणशील ! (सृज) सर्जय (प्रशस्त) (दर्शतम्) दर्शनीयम् ॥१७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे प्रशस्त मियेध्याग्ने ! महिमा सप्रथा विप्रस्त्वमिमं दिवमभि बभूव। उतापि श्रवसा पृथिवीं सं सीदस्व यतो देववीतमो महानसि तस्माद्रोचस्वारुषं दर्शतं धूमं विसृज ॥१७ ॥
भावार्थभाषाः - अयमेव मनुष्याणां महिमा यद् ब्रह्मचर्य्येण विद्यां प्राप्य सर्वत्र विस्तार्य्य शुभानां गुणानां प्रचारं कृत्वा सृष्टिविद्यामुन्नयन्ति ॥१७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे ब्रह्मचर्याने विद्या प्राप्त करतात. त्या विद्येचा व शुभगुणांचा सर्वत्र प्रसार करतात आणि सृष्टिविद्येची वाढ करतात तीच माणसे श्रेष्ठ असतात.